आओ,
72 वां गणतंत्र मनाएं,
प्रेम सौहार्द की सरिता बहाएं !
इंसानियत के रेशमी धागों से,
गणतंत्र की चादर बुन जाएं!
आओ, 72 वां गणतंत्र मनाएं!
तीर तलवारें बहुत चल चुकी,
अब कलम की धार दिखाएं !
निरक्षरता का कलंक मिटा कर,
बलिदानियों को नमन कर जाएं!
लोकतंत्र को सशक्त बनाकर,
नाचते गाते उत्सव मनाएं !
इंसानियत के रेशमी धागों से,
गणतंत्र की चादर बुन जाएं!
आओ,
72 वां गणतंत्र मनाएं,
प्रेम सौहार्द की सरिता बहाएं।।
स्वरचित- डी पी माथुर
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