Search This Blog

Friday, September 24, 2021

गाँव

 तीन दिन गांव में 


शहर की भीड़ से दूर,गावं में,

देश की संस्कृति को जाना!

दरकते, बिखरते रिश्तों से दूर,

आत्मीयता को, कुछ करीब से जाना!

लहलहाते खेतों से फैली हरियाली को,

फूलों की महक, चिड़ियों की चहक में देखा!

पुराने बरगद की छांव में,

भोले भाले, लोगों को सुस्ताते देखा!

सच इन तीन दिनों में,

प्रकृति की मदमस्त हवाओं को, संगीत बन गुनगुनाते देखा।।

स्वरचित- डी पी माथुर

Wednesday, September 22, 2021

श्राद

श्राद

किसे याद करूं, भूल ही नही पाया हूँ, 

किसका श्राद करूं, जिसने हर निवाला दिया है l

मन- मस्तिष्क, स्मृतियों में अंकित, अमिट, 

फिर भी, तिथि जो श्राद की आई है l

शांत समुंद्र में ,यादों का ज्वार सा बन

डबडबाए नयनों से उमड़, बहती अश्रुधारा l

हाथों में तर्पन के अक्षत, तिल

अर्पण के बोलों को, रोकता रुंधा कंठ

पूजन, श्राद की औपचारिकता ll


श्राद पर मेरी कलम का ह्रदय से संगम यह रचना कर पाया

स्वरचित- दुर्गा प्रसाद माथुर