Search This Blog

Wednesday, October 02, 2013

श्राद्ध

                      चिड़ियों की चहचहाहट और कोयल की कूह कूह ने नित्य की तरह फिर से प्राकृतिक अलार्म बजाकर भोर होने का संदेश सुनाया और मैने कुछ पल सुस्ताते हुए बिस्तर त्याग दिया। लाईट जली देख कर कुछ ही देर में पत्नि भी उठ गई और अपने कमरे से अंगड़ाई लेती हुई बिना बात किये मात्र औपचारिक मुस्कुराहट के साथ अपने दैनिक कार्यो में व्यस्त हो गई। आज प्रातः घर का माहौल कुछ अलग अलग भारी सा प्रतीत हो रहा है और दिनों की तुलना में आज कुछ ज्यादा ही शांति महसूस हो रही है। मैं भी अपने दैनिक कार्यो के बाद अखबार के पन्नों को बदलते हुए, सब कुछ सामान्य ही है ऐसा दिखाने की चेष्टा कर चुपचाप बच्चों के जागने की प्रतिक्षा करने लगा फिर कुछ देर में ही उकता कर अपनी पसंदीदा कलम से मन के उदगारों को आकार देने में व्यस्त हो गया ।

                    दरअसल आज ही के दिन मेरी परम पूज्य करूणामयी माँ हम सभी को छोड़ कर स्वर्ग सिधार गई थी शायद ईश्वर को उनकी याद आ गई थी। और कल रात देर तक मैं और धर्म पत्नि माँ के बारे में बातें करते करते सोने चले गये थे। आज उनका श्राद्ध है ।

                    माँ के बारे में सोचकर जब मन उदास होने लगा तो तुरन्त दूसरे मन ने उसे ढ़ाढ़स बंधाते हुए समझा दिया और यह प्रकृति का क्रम यूंही चलता रहेगा। मन की बात मानते हुए गुजरे जमाने की यादों में खोने लगा और महसूस करने लगा कि माँ चाहे हमारे पास से भौतिक रूप से चली गई हों पर उनका प्यार तो आज भी पूर्ववत निरंतर हम पर अपनी करूणा बरसा रहा है। एक माँ का अपने बच्चों के लिए प्यार और त्याग कितना गहरा होता है यह अहसास उनके जाने के बाद ज्यादा व्याकुल कर देता है , नम आँखें माँ के लिये सोचती सोचती कब छलकने लगी इसका अहसास ही नही हो पाया, हाथ की कलम शब्दों को उकेरते उकेरते कांपने लगी। आँखो से निकल कर अश्रु जब कागज पर गिरा तो अहसास हुआ कि यह माँ का पुत्र पर दर्शाया प्यार ही है जो इतना ज्यादा हो गया है कि शरीर में समा नही पा रहा है और अपनी सीमाएं लांघकर आँखों के द्वार से बाहर छलक गया है।

                 मेरी कलम को स्वतः ही विराम मिल गया , मैने अपना चश्मा उतारा और आराम कुर्सी से सर लगा कर शुन्य में देखने लगा। कुछ ही पलों में मैने अपने चश्में को साफ करके वापस लगाया और अपने लैटर पैड को उठा कर वापस कलम चलाते हुए विचारों के अथाह समुंद्र में खो गया।
यह कैसा रूप है प्यार का ?

                हम सभी जीवन में प्यार के सभी रूपों से रूबरू होते रहते है जैसे मित्रों, पारिवारिक सदस्यों और सहृदय पत्नि का पल पल छलकता प्यार एवं एक पिता होने की जिम्मेदारी के साथ महसूस किया जाने वाला प्यार।

                दरअसल प्यार और करूणा का जो रूप एक माँ में विद्यमान होता है वह ओर कहीं भी नही दिख सकता जिसमें प्रेम, त्याग, वात्सल्य और अनेकों रूपों का समावेश है। मैं अपनी इन पंक्तियों  के माध्यम से आपके मन में एक पल के लिए माँ की याद दिलवा सका यही मेरी माँ का सच्चा श्राद्ध और एक पुत्र होने का कर्तव्य है।

भीड़ में तन्हाई सता रही है ,
अकेला हूँ , अहसास करा रही है ,
आत्मा , शरीर  बन्धन में छटपटा रही है,
यादें बोझ बनकर , क्यूं रूला रही है,
ये आज पल-पल, माँ क्यूं याद आ रही है ।

डी पी माथुर

No comments:

Post a Comment