मन गुलाब, तन गुलाब,
शीत ऋतु का, संग गुलाब!!
मन भावों में, कोमलता ले,
भाव बन, बिखरा गुलाब!!
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मन गुलाब, तन गुलाब!!
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भोर सुहानी, शाम गुलाबी,
जीवन की हर, उमंग मस्तानी!
मन की, मदमस्त तरंग से ,
पल पल, बन जाता रूमानी!
जीवन में, उमंगों के,
पंख, लगा देता गुलाब!
मन भावों के, शब्द उकेर,
चहुं दिशा, महकाता गुलाब!
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मन गुलाब, तन गुलाब,
शीत ऋतु का, संग गुलाब!!
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गुलाबों की महक,
रिश्तों को जीवन भर महकाएं!
आपका प्रेम, सम्मान,
नित नई मंजिल पाए!
जीवन बगियां पंखुड़ियों सी,
महक, महक महकाएं।।
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स्वरचित- डी पी माथुर
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