- कलम हाथ में लिए,
कागज पर नैन गड़ाये था ।
भावनाओं की खोज में दौड़ता मन ,
कुछ शब्दों को रूप दे पाया था ।
जाने क्यूं कलम अचानक ठहर गई ,
मानो घरेलू सियासत रंग चढ़ गई !
- बदला रूप देख कर उसका,
मन ने भी सियासत दिखलाई !
अपने विरोधी बयानो से ,
कलम की बैचेनी बढ़ाई !
दो तरफा बयानों के दौर में,
मन ने की चंचल चतुराई !
कलम तो मेरी दासी है ,
इस बयान से की उसकी खिंचाई !
- इनकी बढ़ती लड़ाई ने ,
तन की बैचेनी बढ़ाई !
कोशिश करके भी भावनाएं ,
रूक नही पाई !
सुन्दर नयनों ने भी अपनी ,
अश्रुधारा कागज पर गिराई ,
शब्द भीगते ही कलम, भावुक हो गई,
अंगुलियों की पकड़ शिथिल हो गई !
- जंग से रूक गया जब काम,
तन ने मुखिया की भूमिका निभाई !
मन तुम सबसे चपल व तेज हो ,
हमारी करते हो अगुआई !
पर कलम के बिना आज तक,
तुम्हारी बात क्या पुरी हो पाई ?
सब एक दूजे बिन अधुरे है,
ये समझा उनमें सुलह कराई !
तब जाकर यह कविता पूर्ण हो पाई !
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