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Monday, June 17, 2013

पाखण्ड

                 जब से मानव जन्म हुआ,  साथ रहा पाखण्ड !
                 कलयुग हो या अन्य युग , सदा रहा पाखण्ड !
             

  • ज्ञान को अपनी ढाल बनाकर ,  अज्ञानी , लिबास बदलते !

         स्वांग बनाकर तरह तरह के,   कुछ अलग दिख जाते !
         पाखण्ड की आड़ में , अपना व्यापार जमाते !
         असल ज्ञानी तो साधना में ,  लीन ही रह जाते !


  • सेठ साहूकार कर्ज देकर ,  मोटा ब्याज कमाते ! 

         दान के पंखों पर भी ,   वो अपना नाम लिखवाते !
         प्याऊ और बसेरों से वो , इन्कम टैक्स बचाते !
         परोपकार का पाखण्ड कर ,  उससे भी धन कमाते !


  • शिष्य और शोहरत पाने को ,  झूठा प्रचार करवाते !

         पहुँच और पैसों के दम पर ,  जगत में छा जाते !
         ज्ञानियों के साहित्य ग्रंथ पर ,  पाखण्डी मोहर लगाते !
         ज्ञानी को कोई याद ना रखता ,  पाखण्डी पूजे जाते !


  • माँ बाप के जाने पर  ,    जब मोटी वसीयत पाते ! 

         मीड़िया की देखा देखी ,   सफेद लिबास बनवाते !
         बरसी पर फोटो छपवाकर , इतिश्री कर जाते !
         नाम से उनके ट्रस्ट बना ,  पाखण्डी नोट कमाते !

5 comments:

  1. शुभ प्रभात
    अच्छी व सटीक पंक्तियाँ

    सादर

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  2. अद्भुत ,
    अनूठा ,
    अनुपम काव्य .... !

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    Replies
    1. संजय जी आपको कविता पसंद आई अर्थात लिखने वाले की कलम सार्थक हो गई, आभार !

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  3. सरल सुंदर शब्दों के उपयोग से बेहद प्रभावी पंक्तियों का सृजन । बहुत खूब , .....शुभकामनाएं

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