- सुदूर देव पहाड़ियों में,
बादलों ,चट्टानों में जंग नजर आई !
शांति की तलाश में भटकते इंसा को,
सृष्टि एक बार फिर छल पाई !
- पार्टियों की पार्टी में ,
मच गई कैसी हलचल !
अनेकों भीगती आँखों के बीच ,
कुछ में ग्लिसरीन नजर आई !
असली हो या नकली ,
हर तरफ मायूसी छाई !
- आसमां के कहर रूपी नीर की बूंद,
धरती के संग-संग हर आँख में समाई !
किसी को प्रियजन की याद ने रूलाया,
किन्ही में हमेशा के लिये विरानी छाई !
हर चेहरा निस्तेज,असहाय नजर आया,
रहनूमाओं की असलीयत दिख पाई !
- जब जब इंसा ने विज्ञान संग मिल,
प्रकृति से जीतने की चाह दिखलाई !
प्रकृति ने अपने किसी खेल से,
इंसा को उसकी सीमा दिखलाई !
इस बार फिर साँप सीढ़ी के खेल में ,
नीर रूपी साँप ने फुफकार लगाई !
हमें असहाय देख प्रकृति मुस्कुराई ,
हमारी कोटी वापस नीचे नजर आई !
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