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Friday, October 25, 2019

आओ मन के दीप जलाएं


आओ मन के दीप जलाएं
कुछ मन का अंधियारा मिटाएं।
रूप चतुर्दशी में निखर
चेहरों पर मुस्कान खिलाएं।
हरी भरी फसलों की क्यारी
खेत खेत लहलहाए।
सुख समृद्धिए धन धान्य
घर घर खुशहाली लाएं।
आओ मन के दीप जलाएं………………

सूरज की ज्योति से लेकर
हम सब भी एक दीप जलाएं।
पनप रहे मन के जालों को
नव चेतन से दूर भगाएं।
बिछूड गए जो अपने उनको
फिर से गले लगाएं।
मिल.जुल कर कुछ अपनों से
चहूं ओर खुशियां फैलाएं।
घर सजा रंग रोगन से
मन में भी नई ऊर्जा लाएं।
आओ मन के दीप जलाएं………………….


असंख्य टिमटिमाते तारों संग
कुछ जगमग से दीप मिलाएं।
दीप शिखाओं की श्रंखला में
मन का भी एक दीप जलाएं।
मां लक्ष्मी के स्वागत से
हर घर  हर चेहरा खिल जाएं।
तन मन के दीपक में
आत्मीयता की बाती बनाएं।

आओ मन के दीप जलाएं
कुछ मन का अंधियारा मिटाएं।

स्वरचित. डी पी माथुर जयपुर

2 comments:

  1. बहुत अच्छी सामयिक रचना
    दीपोत्सव की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. उत्साह वर्धन के लिए आपका बहुत बहुत आभार

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