- तुम कहती थी ना ,
कब
बड़ा होगा, मेरा लाल,
लो माँ,आज मैं बड़ा
हो गया हूँ ,
शायद इसीलिए, तुमसे बिछुड़ गया हूँ ,
जमाने की भीड़
में खो गया हूँ ,
लो
माँ, आज मैं बड़ा हो गया हूँ ,
- खो दिया है मैने तुमको,
अब
सुकून कहाँ से आयेगा,
सर्द रात में हौले से,
अब
कम्बल कौन ओढ़ाएगा,
बिन मांगे ही सबमें मेरा,
हिस्सा
कौन दिलाएगा,
बेटा झूँठ नही बोलता,
मेरा
झूँठ कौन छिपायेगा,
खुलकर हँसता था,तेरे पास,
अब
छिपकर सिसक रहा हूँ ,
लो माँ,आज मैं बड़ा
हो गया हूँ ,
जमाने
की भीड़ में खो गया हूँ ,
- मेरी छोटी छोटी बातों को,
कौन, धैर्य से सुन पाएगा,
पिता की डाँट से,
अब कौन
मुझे बचाएगा,
देर से सोया था, सोने दो,
ये सुकून
कैसे मिल पाएगा,
बुरी नजर से बचाने को,
ललाट
पर,चांद कौन बनाएगा,
होकर भी अनजान हो गया हूँ ,
लो माँ, आज मैं बड़ा हो गया हूँ ,
जमाने की भीड़
में खो गया हूँ
- कुर्सी तो अब भी पड़ी है माँ
पर तुम
नजर नही आती,
भोजन तो अब भी, पकता है माँ,
पर खुशबू
क्यूं नही आती,
आन्टी तो,रोज दिखती है माँ,
पर वो, अन्जु की माँ, नही पुकारती,
सफाई वाली तो,अब भी आती है माँ,
पर देखो
ना, पुरानी साड़ी नही मांगती,
ग्यारस तो अब भी आती है माँ,
पर मन्दिर
की, पुजारिन क्यूं नही आती,
लिखता तो अब भी हूँ माँ,
पर कोई
गलती नजर नही आती,
दिखावे के लिए मुस्कुरा रहा हूँ ,
लो माँ,आज मैं बड़ा हो गया हूँ ,
जमाने की भीड़
में खो गया हूँ ,
माँ
को कलम का समर्पण
दुर्गा
प्रसाद माथुर 10-05-2015
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