ऽ मुस्कुरा
जाती हूँ ,जब तुम,
अहंकार में भरकर,
मुझे पुकारते हो अबला ।
ऽ क्या सिर्फ इसलिए,
कि, मैं कोमल हूँ ,
भावनाओं
से भरपूर हूँ ,
या , एक सौम्य दिल रखती हूँ ,
तुम्हारे
अन्जान बंधनों में बंधी हूँ ,
या , मात्र समर्पण ही दिखला पाती हूँ ,
या फिर, सभी का हित करती हूँ ,
ऽ बोलो ना, कैसा आकलन है तुम्हारा ?
क्या सच में ये आकलन है ?
या तुम्हारे
वजूद का डर है।
ऽ याद करो , जब जब तुम हारे हो,
मैने ही जीत दिलायी है।
जब जब
, तुम कमजोर
पड़े,
मैने ही , शक्ति दिखाई है।
तुम नहीं,
जगदम्बा ही, दानव का, वध कर पाई है।
तुम नहीं,
लक्ष्मी बाई ही, तलवार की, धार दिखा पाई है।
तुम नहीं,
सरोजनी ही, कलम से, इतिहास रच पाई है।
तुम नहीं,
पन्ना धाय ही, बेटे की, बली चढ़ा पाई है।
तुम नहीं,
एक महिला ही , शहीद की माँ, कहलाई
है।
ऽ काहे तुम इठलाते हो, शायद भूल जाते हो ,
तुम्हारे शरीर का , एक एक कतरा भी,
एक महिला
ही, बना पाई
है।
इसीलिए, बस मुस्कुरा जाती हूँ ,
जब तुम, अहंकार में भरकर,
मुझे पुकारते हो अबला ।
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