- आई बरखा, झूमा तन मन,
सब अच्छा लगता है।
टूटी सड़कें, फैला कीचड़,
कुछ भद्दा लगता है।
- बच्चों की किलकारी, चँहू ओर हरियाली,
सब अच्छी लगती है।
मजदूर की दिहाड़ी, मौसमी बिमारी,
मन में पीड़ा भरती है।
- नाचते मोर के पंख, कागज की नावें,
मन को हर्षाती है।
भूखे पक्षी, आसरे को तरसते बेघर,
दिल में धाव दे जाती है।
- पकौड़ों की खुशबु , चाय की चुस्की,
मेल मिलाप बढ़ाती हैं।
स्कूल की मजबूरी, दफतर की लाचारी,
कुछ भारी पड़ जाती है।
- गिरती बूँदें , भीगती धरती,
नव अंकुरण करवाती है।
उफनती नदियां, डूबती बस्तियां,
जीवन लील जाती है।
- रिमझिम वर्षा, धरती में समाकर,
जलस्तर बढ़ाती हैं।
कहर ढ़ाती नदियां, उफनते समुंद्र,
मछुआरों की पीड़ा बढ़ाती है।
डी पी माथुर
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