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Tuesday, December 27, 2011

अलविदा 2011


अलविदा 2011
अलविदा बीते वर्ष, अलविदा !
चले जाओ तुम भी रूठ कर !
मेरे अपने अरमानों को कुचल कर !
कितनी आषाएँ थी कितनी उम्मीदें थी !
चले जाओ तुम सब रौंद कर !
मन बुझा है तुम्हें क्या ?
दिल टुटा है तुम्हें क्या ?
तुम तो मन भर जिये हो ना
मेरी पीर का तुम्हें क्या ?
तुम तो खुष हो ना ?
सत्य र्साइं का साथ छुडाकर !
वैष्विक मंदी फैलाकर !
नित नये घोटाले कर !
सात अरब जन संख्या बनाकर !
फिर भी विदाई तो तुम्हें देनी ही होगी !
औपचारिक पार्टी में धन्यवाद तो देना ही है !
तुमने कुछ अच्छा जो किया है !
गरीब को खाद्य सुरक्षा का आष्वासन दिलाकर !
उपवासांे का महत्व समझा कर !
तिहाड़ का मान बढाकर !
अग्नि, पृथ्वी और अस्त्र दिलाकर !


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