श्राद
किसे याद करूं, भूल ही नही पाया हूँ,
किसका श्राद करूं, जिसने हर निवाला दिया है l
मन- मस्तिष्क, स्मृतियों में अंकित, अमिट,
फिर भी, तिथि जो श्राद की आई है l
शांत समुंद्र में ,यादों का ज्वार सा बन
डबडबाए नयनों से उमड़, बहती अश्रुधारा l
हाथों में तर्पन के अक्षत, तिल
अर्पण के बोलों को, रोकता रुंधा कंठ
पूजन, श्राद की औपचारिकता ll
श्राद पर मेरी कलम का ह्रदय से संगम यह रचना कर पाया
स्वरचित- दुर्गा प्रसाद माथुर
नमन
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