आज किसी बच्चे को प्रातः जगाने के लिए आवाज नही लगानी पडी, घर में खुशनुमा माहौल है, लग रहा है कि घर के प्रत्येक कोने में साफ और सुन्दर दिखने की होड लगी है और किचन से आती पकवानों व मिठाइयों की खुशबू से तो ऐसा लग रहा है मानो किचन तो अपनी गृह स्वामिनी के साथ मिलकर शाम होने से पहले ही अपने आप को विजेता घोषित करवा लेना चाहती है ।
मेरे हिस्से हर दिपावली की भाँति इस बार भी मन्दिर का कमरा और पूजा की तैयारियों का काम आया है, मैंने अपनी दोनों बेटियों के साथ मिलकर जल्दी से मन्दिर की सफाई करवाई और पूजा के प्रथम चरण मांडणा (रंगोली) के लिए पुत्रियों को लगाया । मांडणे मे स्वास्तिक बनाते हुए पुत्री ने पूछा, ये स्वास्तिक क्यों बनाते हैं ? जवाब में मैंने अपनी माँ से विरासत में मिले ज्ञान को उन्हे बताते हुए कहा कि हमें प्रत्येक शुभ कार्य की शुरुआत स्वास्तिक चिन्ह बनाकर करनी चाहिये क्योंकि यह सुख-सौभाग्य, मंगल कामना का द्योतक तथा सूर्य और भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है, इसकी खडी व आडी रेखाओ से मिलकर बनने वाला +चिन्ह हमें चारो दिशाओं का प्रतीक है इसके मध्य भाग को भगवान विष्णु की नाभि, चारों रेखाओं को ब्रह्मा जी के चारों मुख एवं चारों भुजाओं को चारों वेद माना जाता है । स्वास्तिक चिन्ह देवताआंे का ओज (तेज) स्वरुप है जो हमारे जीवन में शुभता लाता है इसीलिए व्यापारी वर्ग इसे शुभ-लाभ का प्रतीक भी मानते हैं ।
पुत्रियाँ मन्दिर का मांडणा (रंगोली) पूरा कर बाहर देहरी तथा आंगन मे मांडणा मांडणे चली गई थी और मैं इस त्यौहार के मुख्य पात्र मिट्टी के दीपकों को स्वच्छ पानी मे डालते हुए सोचने लगा कि इंसान और इस मिट्टी के दीपक में कितनी समानता होती है। इंसानो की ही तरह दीपक भी पंच तत्वों ( मिट्टी , पानी, हवा, वातावरण, आग) से बना होता है । इसे बनाने वाला कुम्हार तालाब की मिट्टी को कूट-कूट कर, पानी मिलाकर लोना बनाता है फिर उसे चाक पर लगाकर अपने कुशल शिल्पी हाथों से दीपक के आकार का सृजन करता है फिर उसे सुखाकर धीमीं-धीमीं आग में पकाता है अर्थात् कुम्हार भी हमारी जन्मदात्री माँ की तरह दीपक की माँ बनकर उसे पूर्ण रुप प्रदान करता है । इस बातों को सोचते सोचते मेरा मन भावुक हो उठा , मेरे मन में दीपक क्या सोचते हैं या क्या बातें करते हैं यह सुनने की जिज्ञासा जाग गई और मैं मन ही मन लक्ष्मी माँ से इनसे बातें करने की शक्ति मांगने लगा............,
अरे, ये क्या मुझे तो सचमुच दीपकों के बीच चल रही बहस सुनाई देने लगी । एक नौजवान दीपक कुम्हार पर नाराज होते हुए कह रहा था मुझे दीपक नही बनना था मुझे तो एक फूलदान का आकार चाहिये था जिससे मुझे कोई सुन्दर सी लड़की खरीद कर अपने घर ले जाती, मुझे संवारती, फूल लगाती और इठलाती हुई ड्राइंग रुम में सजाती । दूसरा दीपक उसकी बात काटते हुए बोला, ड्राइंग रुम मे रखे-रखे जब कई दिन तक तुम्हारे ऊपर से धूल नहीं हटायी जाती तो तुम्हे कैसा लगता , इसीलिये मुझे तो दुर्गा या गणपति की बड़ी मूर्ति बनना था जिससे लोग कई दिनो तक मेरे दर्शन करते, पूजा अर्चना करते फिर बैण्ड बाजों के साथ मेरा विसर्जन किया जाता । इसकी बात काटते हुए बीच में ही तीसरा दीपक बोल उठा आजकल इंसान ने शहरों में विसर्जन के लिए स्वच्छ तालाब या नदियां छोड़ी ही कहाँ हैं , यदि तुम्हारा विसर्जन करने की बजाय कम पानी में तुम्हें छोड दिया जाता तो तुम्हें कितना कष्ट होता, इसीलिए मेरी इच्छा तो ऐसा खिलौना बनना था जिससे मैं देव स्वरुप बच्चों के संग खेलता और उनका मन मोह लेता, वे मेरे सिर पर बने छेद से पैसे डालकर बचत करने की आदत भी सीखते । चौथे दीपक ने उसकी तरह मुँह बनाते हुए कहा, आजकल बाजार मे सस्ते रंग बिरंगे चीनी खिलौने आ गये हैं, नये बच्चे तो मिट्टी के खिलौने जानते ही नही हैं जब तुम्हे कोई नही खरीदता तो तुम्हे बनाने वाले कुम्हार का दिल कितना दुखता, सोचा है तुमने, इसलिये मैं तो मिट्टी का वह तवा बनना चाहता था जिसे कोई गरीब आदमी खरीद कर जब घर ले जाता तो मुझे देखते ही उसकी पत्नि खुश हो जाती, मैं चूल्हे पर आग सहकर भी उसके परिवार को मुलायम रोटियां सेककर खिलाता तो मेरा जीवन धन्य हो जाता।
इसी बहस में अन्य दीपक भी बोलना चाह रहे थे लेकिन सबसे बडे दीपक ने बहस बढ़ते देख सबको समझाते हुऐ कहा, कोई भी आकार या रुप छोटा बड़ा नहीं होता है हमारे कर्म हमें छोटा या बड़ा बनाते हैं इसीलिए प्रकृति ने कुम्हार के माध्यम से तुम्हें जो स्वरुप प्रदान किया है वह सर्वश्रेष्ठ है। आज हम लक्ष्मी माँ के पूजन मे रखे जायेंगे ये हमारा सौभाग्य है। अभी जब हम बाती, तेल, वायु और अग्नि के साथ मिलकर एक सयुंक्त परिवार के रुप मे प्रकाश फैलायेंगे तो अज्ञानता का अंघेरा हमारे प्रकाश से डरकर दूर चला जायेगा जिससे हमारा यह जन्म सार्थक हो जायेगा। हमारा कर्म हमें आकार में छोटा होते हुए भी सभी से महान बना देगा ।
सभी दीपकों की बहस सुनते सुनते मैंने उन्हें जल से निकाल कर उनमें बाती, तेल व प्रसाद आदि रखकर पूजा के लिये तैयार कर दिया था और पटाखों की थैली से पटाखे निकाल कर बाहर रख रहा था कि अचानक चौंक कर रुक गया मुझे उनकी भी बातें सुनाई दे रही थी उत्सुकता से मैं उनकी बहस सुनने लगा, एटम बम बडे गुरुर मे भरकर कह रहा था मैं सर्व शक्तिमान हूँ मुझे कमजोर दिल वाले तो चलाने की हिम्मत ही नहीं करते और जब मैं फूटता हूँ तो अच्छे- अच्छे काँप जाते हैं। उसकी बात खत्म होने से पहले ही अनार बीच में बोलने लगा, इसीलिए तुम्हें ज्यादा लोग पसन्द भी नही करते हैं मुझे देखो महिलाएँ, बच्चे और बडे़ सभी बड़े चाव से मेरी बाती में आग लगाते हैं और मैं जलते समय अपने अन्दर भरे रंग बिरंगे सितारांे को पूरे वेग से निकाल कर रात में भी दिन सा प्रकाश फैला देता हूँ । इस बहस में जमीन चक्कर कहाँ चुप रहने वाली थी वो भी बोलने लगी मेरी तरह रोशनी फैलाते हुए कोई नही नाच सकता, मौका देख बमों की लड़ी भी अपनी एकता के आगे कोई नही टिक सकने का पाठ पढ़ाते हुए इतराने लगी ।
शायद बड़ी फूलझड़ी मेरी और घ्यान से देख रही थी इसीलिए उसने सभी को शांत करते हुए कहा, तुम सभी अच्छे हो लेकिन कुछ बातें मुझसे सीखो, जैसे मैं बच्चों से बड़ो तक सभी को पसन्द आती हूँ , मेरे शरीर में घातु का तार होने पर भी मैं शिकायत नही करती, मुझे जलाने के लिये काफी धैर्य रखना पड़ता है अर्थात् मैं धैर्य शीलता का पाठ पढ़ाती हूँ , मैं जलने पर सितारों वाली रोशनी फैलाती हूँ । मेरे से अन्य पटाखो में आग लगाई जाती है अर्थात् मैं दूसरों के काम आती हूँ , पूरी जलने के बाद भी मेरे तार को एक तरफ रखा जाता है जो मेरी शक्ति का प्रतीक है। मैं तुम सभी से बड़ी होने के नाते समझा रही हूँ हमें आपस में बहस नही करनी चाहिए क्योंकि हम सभी बारी बारी से जलकर ही सभी को पूर्ण आनन्द देते हैं ।
पूजा की तैयारी हो गई क्या..............? नये कपडे़ पहन लो मुहूर्त का समय होने वाला है, इस आवाज ने मेरा घ्यान वापस तोड़ा, सभी जल्दी से तैयार हुए और सपरिवार लक्ष्मी जी, गणेश जी और सरस्वती माँ की पूजा की । सभी मंदिरों में दीपक रख कर आए फिर लक्ष्मी जी के सामने फूलझडियाँ जलाई और सभी बड़ों को प्रणाम कर बाकी पटाखे लेकर बाहर खुले में आ गये । सभी आने वालों को शुभ कामनाएँ देते हुए पटाखे जलाने लगे, आपको भी दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ, आपकी पूजा पूर्ण हो गई हो तो आ जाइये पटाखे जलाते हैं।
डी पी माथुर
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