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Friday, September 24, 2021

गाँव

 तीन दिन गांव में 


शहर की भीड़ से दूर,गावं में,

देश की संस्कृति को जाना!

दरकते, बिखरते रिश्तों से दूर,

आत्मीयता को, कुछ करीब से जाना!

लहलहाते खेतों से फैली हरियाली को,

फूलों की महक, चिड़ियों की चहक में देखा!

पुराने बरगद की छांव में,

भोले भाले, लोगों को सुस्ताते देखा!

सच इन तीन दिनों में,

प्रकृति की मदमस्त हवाओं को, संगीत बन गुनगुनाते देखा।।

स्वरचित- डी पी माथुर

Wednesday, September 22, 2021

श्राद

श्राद

किसे याद करूं, भूल ही नही पाया हूँ, 

किसका श्राद करूं, जिसने हर निवाला दिया है l

मन- मस्तिष्क, स्मृतियों में अंकित, अमिट, 

फिर भी, तिथि जो श्राद की आई है l

शांत समुंद्र में ,यादों का ज्वार सा बन

डबडबाए नयनों से उमड़, बहती अश्रुधारा l

हाथों में तर्पन के अक्षत, तिल

अर्पण के बोलों को, रोकता रुंधा कंठ

पूजन, श्राद की औपचारिकता ll


श्राद पर मेरी कलम का ह्रदय से संगम यह रचना कर पाया

स्वरचित- दुर्गा प्रसाद माथुर

Sunday, August 15, 2021

स्वतंत्रता दिवस-1

 

 

जन जन में गुणगान,

मां भारती का ध्यान ।।

माटी जैसे चंदन महके,

नाम है हिन्दुस्तान ।।

जन जन में गुणगान,

मां भारती का ध्यान ।।

स्वतंत्र भावस्वतंत्र तंत्र,

स्वतंत्र बोली और परिधान ।।

धन्य हुआ मैं जन्म लेकर,

मेरा न्यारा हिन्दुस्तान ।।

बच्चा बच्चा सैनिक बन,

बढ़ाता तिरंगे की शान ।।

अश्रुपूरित नयनों में,

वीर शहीदों का बलिदान ।।

प्रेम भावना, अमन चैन,

करता सबका कल्याण ।।

देश प्रेम के जयकारे से,

गूंज उठा आसमान ।।

जन जन में गुणगान,

मां भारती का ध्यान ।।

स्वरचित - डी पी माथुर

स्वतंत्रता दिवस


 

Wednesday, July 21, 2021

तोहफा

 खुशियों से भरा दिन, तुम्हारा जन्मदिन,

कभी टप टप तो कभी फुहार से रंगीन,

चहुं ओर खुशियां बिखेरता, तुम्हारा जन्मदिन।


सोचा, कोई तोहफा अर्पण करूं,

खोज ना सका।

तुम्हारे, समर्पण के आगे, सब गौण सा लगा।


सोचा, कोई लिबास भेंट करूं,

खरीद ना सका।

तुम्हारे, वृहत आवरण से, सब तुच्छ सा लगा।


दिल बोला, निराश ना हो,

मात्र स्नेह ही छलका देना, अपने बोलो में।

तुम्हारे निश्छल प्रेम के आगे, मेरा स्नेह भी बौना सा लगा।


मात्र, गुलाब गुच्छ की महक,

तुम्हारे व्यक्तित्व सी लगी,

खिली खिली, महकी महकी,

वही अर्पण है, 

इससे महकता रहे सम्पूर्ण दिन,

मुबारक हो आपको, प्यारा सा जन्मदिन।


मौलिक - प्रीति के जन्मदिन पर डीपी की कलम से

Monday, July 12, 2021

वर्षा

 अभी बारिश की बरसती बूंदों में मन के उदगार...


बरसती बूंदों से बरसती उमंग,

कुछ पुष्पों पर, कुछ पत्तियों पर,

कुछ पत्थर पर,

कुछ मखमली कलियों पर,

अंत में ढलक कर ,समाती

ज़मीं के आगोश में

प्रकृति को फिर से जवां कर,

दायित्व निभाती अपने होने का,

और एक संदेश दे जाती,

इंसा को, कर्तव्य निभाने का,

सहेज लेने का इस अमृत को,

भर देने को आंचल में खुशियां

धरा के हर सृजन में।

स्वरचित;-

डी पी माथुर

Wednesday, July 07, 2021

सिलसिला

 बिल्कुल सही कहते हैं लोग🙂

चार दिन गायब होकर देखिए,

सब आपको भूल जाएंगे।

🌹🌹🌹🌹🌷🌷

लेकिन क्या करें🙂☹️

चार दिन साथ चल लें,

स्नेह जकड़ लेता है।

बाहरी व्यक्तित्व तो मात्र,

क्षणिक आकर्षण देता है।

नजदीकियों की गुफ्तगू,

कुछ लगाव बढ़ाती है।

लेकिन,☹️☹️☹️

कुछ संभालो अपने को यारों

जगत भौतिक हो चला है,

दिमाग़ की दिल पर हुकूमत का,

सिलसिला आज आम हो चला है।🌷🌹🌷🌹🌷🌹 

मौलिक- डी पी माथुर - अंजय

Thursday, July 01, 2021

गणतंत्र

 आओ,

72 वां गणतंत्र मनाएं,

प्रेम सौहार्द की सरिता बहाएं ! 

इंसानियत के रेशमी धागों से, 

गणतंत्र की चादर बुन जाएं!

आओ, 72 वां गणतंत्र मनाएं! 


तीर तलवारें बहुत चल चुकी,

अब कलम की धार दिखाएं !

निरक्षरता का कलंक मिटा कर, 

बलिदानियों को नमन कर जाएं!

लोकतंत्र को सशक्त बनाकर, 

नाचते गाते उत्सव मनाएं !


इंसानियत के रेशमी धागों से, 

गणतंत्र की चादर बुन जाएं!

आओ,

72 वां गणतंत्र मनाएं, 

प्रेम सौहार्द की सरिता बहाएं।।


स्वरचित- डी पी माथुर

विवाह वर्षगांठ

 तीस वर्षो का सुनहरा सफर,

वर्ष दर वर्ष, परिपक्व होकर

निखरता सा गया!

मैं खुशनसीब रहा क्यूकि,

तुम्हारा हर पल साथ

स्नेह रुप में, बिखरता ही गया 🙂 

 अनेकों कठिन समय आए

जब मैं टूट के बिखरा था

मां का दुलार छिनने पर 😭

पिता सा आकाश खोने पर 😭

तुमने ही हिम्मत दिलाई थी

जीवन तो जीना है

प्रकृति की सीख सिखाई थी

जीवन की आस जगाई थी।


सच में कहूं, तो मात्र,

अर्धांगनी नही, पूर्ण रूप से,

मुझ में, मैं बन समाई हो।


जबसे तुम जीवन में आई 

खुशियां ही खुशियां भर लाई 

प्रीति के प्रीत से

इस जीवन की ही नही

सात जन्मों की राह खुल पाई 🥰


आपको,

 तीस वर्ष आसान बनाने का, 

हृदय से साथ निभाने का

 बहुत बहुत धन्यवाद😍

स्वरचित डी पी माथुर, प्रीति

गले लगा लो

 रूठे है जो, उनको गले लगा लो !

बिछड़े हैं जो, उन्हें पास बुला लो !

भूलकर शिकवे, साथ बिठा लो !

रूठे है जो, उन्हें गले लगा लो ।।


नजरें मिला, बस बाहें फैला लो !

वैर भाव भूल, फिर से अपना लो !

समय फिसल, फासले बनाए !

उससे पहले, स्वयं को संभाल लो!

रूठे है जो, उनको गले लगा लो।।

 

हार्दिक शुभकामनायें

स्वरचित- डी पी माथुर

💐💐🌷🌷🌹🌹

मन गुलाब तन गुलाब

 मन गुलाब, तन गुलाब,

शीत ऋतु का, संग गुलाब!!

मन भावों में, कोमलता ले,

भाव बन, बिखरा गुलाब!!

🌹🌹🌹🌹🌹🌹

मन गुलाब, तन गुलाब!!

🌹🌹🌹🌹🌹🌹

भोर सुहानी, शाम गुलाबी,

जीवन की हर, उमंग मस्तानी!

मन की, मदमस्त तरंग से ,

पल पल, बन जाता रूमानी!

जीवन में, उमंगों के,

पंख, लगा देता गुलाब!

मन भावों के, शब्द उकेर,

चहुं दिशा, महकाता गुलाब!

🌹🌹🌹🌹🌹🌹

मन गुलाब, तन गुलाब,

शीत ऋतु का, संग गुलाब!!

🌹🌹🌹🌹🌹🌹

गुलाबों की महक, 

रिश्तों को जीवन भर महकाएं!

आपका प्रेम, सम्मान,

नित नई मंजिल पाए!

जीवन बगियां पंखुड़ियों सी,

महक, महक महकाएं।।

🌹🌹🌹🌹

स्वरचित- डी पी माथुर