इंसान जीवन में जो पाना चाहे वह नही मिले या किसी से अपेक्षा करे और वह पुरी नही हो तो कष्ट का अहसास होता है। या किसी से अत्यघिक लगाव भी हमारे कष्ट का मुख्य कारण होता है।आज किसी बात पर धर्मपत्नि से मनमुटाव होने पर मैं खामोश हो गया। इस खामोशी ने मुझे कष्ट का अहसास करा दिया और मैं मन ही मन एनालिसिस करने लगा कि हमें निराशावादी बनाने वाला ये कष्ट है क्या ? कहां से आया ? क्या मैं अकेला हूँ जिसे कष्ट है। मैने आँखें मूंद कर अपने आस पास के माहौल पर मन की दृष्टि डाली तो देखा कि यह तो आम बात है। आज प्रत्येक इंसान को दुसरे से कष्ट है। लगता है कि इस संसार में सभी को किसी ना किसी बात पर कष्ट है। जहां तक मैं सोच पाया उसके अनुसार इंसान जीवन में जो पाना चाहे वह नही मिले या किसी से अपेक्षा करे और वह पुरी नही हो तो कष्ट का अहसास होता है। या किसी से अत्यघिक लगाव भी हमारे कष्ट का मुख्य कारण होता है। अब सवाल ये आता है कि यह आया कहां से ? इसके लिये मैं वापस अपने अतीत पर चला जाता हूँ। जब मेरे जीवन में धर्मपत्नि नही थी तब क्या मुझे कष्ट नही था ? लेकिन वास्तव में ऐसा नही है उस समय तो धर्मपत्नि नही होना ही मेरा सबसे बड़ा कष्ट था। आज हमें अपने रोजगार से कष्ट है लेकिन यह रोजगार जब हमारे पास नही था तो हमें सबसे ज्यादा कष्ट इसके नही होने का ही था। यही बात हमारे रिश्तों और अन्य सभी बातों पर लागू होती है। और तो और विभिन्न प्रयत्न और नित्य ईश्वर की प्रार्थना करके प्राप्त की गई हमारी प्रिय संतानों से भी आज हमें कष्ट क्यों महसूस हो रहा है ? अरे मुझे ऐसा क्यों लगने लगा कि मैं शब्दों के मायाजाल में उलझ गया हूँ। देखिये मुझे शाब्दिक मायाजाल में उलझने का ही कष्ट होने लगा है। लेकिन मेरी इस बात से तो आपको सहमत होना ही पड़ेगा कि हमारी नित नई इच्छाएं और बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ ही आकार में बडी होेकर पूर्णता के फल में बदलती हैं और जैसे जैसे हम उनके पूर्ण होने का फल खाते रहते हैं हमारे पास उस फल से निकलने वाले कष्ट के बीज इकट्टठे होने लगते हैं और जब इन्ही कष्ट रूपी बीजों को अनुकूल वातावरण मिलता है तो ये पनपने लगते हैं। बस फिर क्या जैसे जैसे ये पौधे बडे़ होने लगेंगे वैसे वैसे हमारा कष्ट भी बढ़ता जायेगा। कहीं आप ये तो नही सोचने लगे की मैं आपको इच्छाएं और महत्वाकांक्षाए नही रखने की सलाह दे रहा हूँ। ऐसा नही है सफल और जीवंत जीवन जीने के लिए यह सब जरूरी है। बस आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी सोच और महत्वाकांक्षाओं में तालमेल बैठा कर इन कष्ट रूपी पौघों को पनपने ही ना दें। आप यह अच्छी तरह से समझ लें कि कार्य और रिश्तो से आप बच नही सकते तो फिर उन्हें ढोने से अच्छा हैे कि उन्हें जी भर कर जियें । बात करते करते अब मुझे लगने लगा है यदि मैने अपनी बात को और आगे बढाया तो आपको कही पढने में कष्ट ना होने लगे इसलिए अन्त में कहना चाहूँगा कि आज के किसी कष्ट का निवारण ही कल हमारे नये कष्ट के जन्म का कारण होगा । कष्ट केवल महसूस किया जाता है। वास्तव में नहीं होता।
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Sunday, March 18, 2012
कष्ट
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