आज अपने मित्र की असामयिक मृत्यु के समाचार ने मेरा मन अन्दर से व्याकुल कर दिया। उसकी कही ये बातें कि बस थो़ड़ा समय ओर निकल जाये फिर चिन्ता नहीं क्योकि मेरा भविष्य बहुत अच्छा होगा, मुझे लगा कि मैं भी तो ऐसे ही सोचता हॅूं ओर मैं ही क्या प्रत्येक इन्सान ऐसे ही सोचता है। तो क्या हमारी वर्तमान के प्रति यह सोच सहीं है ? क्या ऐसे सोचते सोचते हम अच्छे की इन्तजार मैं अचानक चले नहीं जाते? क्या यही हमारे जीवन की सच्चाई है।
मैने अपना पूर्व जन्म तो देखा नही कि मैं किस योनी में था मानव भी था या फिर कोई अन्य प्राणी ? उस योनी मेैं मैंने अपना जीवन कैसे बिताया ? खैर छोड़िये क्या फायदा इस पूर्व जन्म की चर्चा से। हां मुझे यह मालूम है कि इस जन्म मेैं ईष्वर ने मुझे पूर्व जन्म में किये मेरे अच्छे कर्मो की बदोलत श्रेष्ठ मानव योनी प्रदान की है। ओर इस योनी में बिताए भूतकाल को मैं भली भंाति जानता हॅू।
लेकिन अब यह प्रष्न मुझे बैचेन करने लगा कि मेरा भविष्य कैसा होगा ? क्या मुझे अपनी जीवन षैली पर पुनः विचार करना चाहिए ? यदि इन्सान को उसका भविष्य देखने कि क्षमता ईष्वर द्धारा प्रदान कर दी जाती तो षायद जीवन की परिभाषाएं ही बदल जाती । हम अपने जीवन को अपनी मृत्यु तक की योजनाओं मे सीमित कर लेते और विकास का पहिया ही थम सा जाता।
अरे मैने भी आपको किस भूत-भविष्य काल में उलझा दिया। भूत काल तो मर चुका है । और भविष्य काल अभी पैदा ही नहीं हुआ हैं। बस हमें तो जो समय अभी चल रहा है। और जिसकी गतिविधियां हम महसूस कर रहें हैं। अर्थात एकमात्र काल जो अभी जीवित है- ‘‘ वर्तमान काल ‘‘उसको सुन्दर ओर सुखी बनाने के बारे में प्रयत्न करने चाहिए ।
आज हम सभी अपने भूत भविष्य में ही उलझ कर रह गए है। या तो भूत काल में बिताए समय को लेकर दुखी होते रहते हैं या सुनहरा भविष्य बनाने के चक्कर में अपने आप के खर्चो में आवष्यकता से अधिक कटौती कर के एवं अधिक धन कमा लेने की लालसा में अपनी इच्छाओं का गला धोंटते रहते हैं । ओर सुनहरे भविष्य की कोरी कल्पनाओं के स्वप्न देखते रहते हैं।
लेकिन जरा सोचिए कि क्या आपका भविष्य कभी मूर्त रूप ले पायेगा या उससे पहले ही ईष्वर को आपकी आवष्यकता पड़ जायेगी ओर आपको जाना ही पड़ेगा। आप ईष्वर से यह तो नहीं कह पायेगें कि मैंने अभी अपना भविष्य का सुख भोगा ही नहीं है। अतः कुछ मोहलत चाहिए।
मेरे कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं हैं कि आप अपने भविष्य की योजना ना बनाएं । आपको कम से कम 30-40 वर्ष आगे की सोच तो रखनी ही पड़ेगी। लेकिन उसके लिए आपको एक सीमा निर्घारित करनी ही होगी जिससे आप उज्जवल भविष्य के साथ साथ वर्तमान का पूरा आनन्द उठा सकें । याद रखे कि सफलता के मार्ग पर चलने वाले सदा वर्तमान में जीते हैं। और प्रतिदिन का कार्य भलीभांति पूर्ण करने के साथ प्रति क्षण बिताए हर एक पल में खुषी ढूॅंढ लेते हैं।
वर्तमान काल में जीने से जो चीज हमें सबसे ज्यादा रोकती है वह है हमारी चिन्ता या अनावष्यक डर जो हमें प्रति क्षण सताता रहता हैं । और हम प्रत्येक क्षण का पूर्ण आनन्द नहीं उठा पाते है। आपको मालूम होना चाहिए कि यह अनावष्यक भय या चिन्ता हमारे षरीर में एक रसायन स्त्रावित करता हैं जो हमारे मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालता हैं।अतः चिन्ता , भय से बचने की कोषिष करें इससे पूर्ण रूप से तो किसी इंसान का बचना कठीन है लेकिन कोषिष करने वालों को ही कामयाबी हासिल होती है।
कुछ छोटी-2 बातें व टिप्स हैं जिससे हम अनावष्यक भय या चिन्ता से बच सकते है।
ऽ अपनी सोच सकारात्मक बनाये।
ऽ दूसरों को क्षमा करने की आदत बनाये।
ऽ अच्छे मित्रो सें मेलजोल बनाकर रखें।
ऽ दूसरों की बूराई करने से बचें।
ऽ भौतिक साधनों के साथ साथ प्रतिदिन कुछ ब्रह्म ज्ञान अपने में जोड़े।
ऽ अपनी वर्तमान स्थिति के लिए माता पिता के साथ साथ ईंष्वर को प्रतिदिन धन्यवाद दें।
ऽ जो आपके पास अभी है उसमें खुषी तलाषे ।
इस विषय का कोई छौर नही है अतः में अपनी लेखनी को इन अन्तिम पंक्तियों के साथ विराम देना चाहूंगा कि इस क्षण भंगूर जीवन को यर्थात में जीते हुये अपनी क्षमता से अधिक महत्वाकांक्षा पर अंकुष लगायें और वर्तमान के प्रत्येक क्षण को जी भर के जीयें क्योंकि वास्तव में केवल यही आपका अपना है भविष्य ना किसी का हुआ और ना होगा। साथ ही अपने कार्य और ईष्वर भक्ति में इतने वयस्त हो जायें की अन्य विचारों के लिए समय ही ना बचें ’’वर्तमान सुखी तो सब सुखी’’
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