*कैलेंडर तो, बदल गया है*
*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*
उगते सूरज, की लाली से,
नई उष्मा, स्वयं में भर लें |
बाकी रहे, जो काम अभी तक,
सर्व प्रथम अब, उनको करलें |
*कैलेंडर तो, बदल गया है*
*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*
सकारात्मक, सोच बना हम,
खुशियों से अपनी झोली भरलें |
नव पीढ़ी का स्वागत कर,
बुजुर्गो के कष्टों को हरलें |
*कैलेंडर तो, बदल गया है*
*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*
व्यथा सबकी जान जान हम,
पीड़ा उनकी कुछ हरलें |
रखना स्वस्थ, खुशहाली देना,
अपने प्रभु से विनती करलें |
*कैलेंडर तो, बदल गया है*
*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*
अधूरे रहे अपने सपनों को,
आओ,मिलकर पुरे करलें |
मन की, ऊँची उड़ानों को,
कागज कलम से, कैद करलें |
*कैलेंडर तो, बदल गया है*
*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*
छोटी छोटी, खुशी के पल में,
कुछ हँसा लें, कुछ हँस लें |
हर,भारतवासी की झोली में,
सब मिलकर, कुछ खुशियाँ भर दें |
*कैलेंडर तो, बदल गया है*
*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*
स्वरचित - दुर्गा प्रसाद माथुर, जयपुर
No comments:
Post a Comment