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Wednesday, January 01, 2025

संतुलित जीवन

 *संतुलित जीवन,को अपना लो|*

*स्वस्थ जीवन, अपना बना लो |*

जल्दी निंद्रा, ब्रह्म में जागना, 

भोर की सैर पर, कदम बढ़ा लो |

गुनगुना पानी, थोड़ी कसरत, 

प्रातः स्नान का, मंत्र, अपना लो |

*संतुलित जीवन,को अपना लो|*

*स्वस्थ जीवन, अपना बना लो |*

प्रभु का ध्यान, धूप दीप नेवैध , 

हवन, पूजा से, ऊर्जा बढ़ा लो|

पक्षी चुग्गा, गौ ग्रास, बटुक रोटी दे, 

अच्छे जीवन का, नियम बना लो |

*संतुलित जीवन,को अपना लो|*

*स्वस्थ जीवन, अपना बना लो |*

फल, सब्जी, दूध अपनाकर, 

फास्ट फूड से, दूरी बना लो |

मुस्काते अधर, दिलों में करुणा, 

प्रकृति से, सानिध्य बना लो |

*संतुलित जीवन,को अपना लो|*

*स्वस्थ जीवन, अपना बना लो |*


स्वरचित - दुर्गा प्रसाद माथुर, जयपुर

नया वर्ष

 *कैलेंडर तो, बदल गया है*

*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*

उगते सूरज, की लाली से, 

नई उष्मा, स्वयं में भर लें |

बाकी रहे, जो काम अभी तक, 

सर्व प्रथम अब, उनको करलें |

*कैलेंडर तो, बदल गया है*

*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*

सकारात्मक,  सोच बना हम, 

खुशियों से अपनी झोली भरलें |

नव पीढ़ी का स्वागत कर, 

बुजुर्गो के कष्टों को हरलें |

*कैलेंडर तो, बदल गया है*

*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*

व्यथा सबकी जान जान हम, 

पीड़ा उनकी कुछ हरलें |

रखना स्वस्थ, खुशहाली देना, 

अपने प्रभु से विनती करलें |

*कैलेंडर तो, बदल गया है*

*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*

अधूरे रहे अपने सपनों को, 

आओ,मिलकर पुरे करलें |

मन की, ऊँची उड़ानों को, 

कागज कलम से, कैद करलें |

*कैलेंडर तो, बदल गया है*

*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*

छोटी छोटी, खुशी के पल में, 

कुछ हँसा लें, कुछ हँस लें |

हर,भारतवासी की झोली में, 

सब मिलकर, कुछ खुशियाँ भर दें |

*कैलेंडर तो, बदल गया है*

*क्यूँ ना हम भी, थोड़ा बदलें|*

स्वरचित - दुर्गा प्रसाद माथुर, जयपुर

Monday, July 25, 2022

तुम्हारा जन्मदिन

 बरसती बारिश की,

अमृत बूंद हो तुम! 

खामोशी में छिपी, 

मेरी लफ्ज हो तुम! 

तन्हाई में याद बन, 

हर पल संग हो तुम! 

उदासी के क्षणों की, 

मात्र राजदार हो तुम! 

जमाने से, बढ़ती दूरियों में, 

दिल के नजदीक हो तुम! 

मेरी, सबसे मुलाकातों में, 

रूह सी मौजूद हो तुम! 

और तो क्या कहूँ, बस, 

मेरी, हर सांस में बहती, 

प्राण रूप में सर्वस्व हो तुम!! 


प्रीति के जन्मदिन पर मेरी भावनाओं के स्वरचित बोल- डी पी माथुर

Friday, September 24, 2021

गाँव

 तीन दिन गांव में 


शहर की भीड़ से दूर,गावं में,

देश की संस्कृति को जाना!

दरकते, बिखरते रिश्तों से दूर,

आत्मीयता को, कुछ करीब से जाना!

लहलहाते खेतों से फैली हरियाली को,

फूलों की महक, चिड़ियों की चहक में देखा!

पुराने बरगद की छांव में,

भोले भाले, लोगों को सुस्ताते देखा!

सच इन तीन दिनों में,

प्रकृति की मदमस्त हवाओं को, संगीत बन गुनगुनाते देखा।।

स्वरचित- डी पी माथुर

Wednesday, September 22, 2021

श्राद

श्राद

किसे याद करूं, भूल ही नही पाया हूँ, 

किसका श्राद करूं, जिसने हर निवाला दिया है l

मन- मस्तिष्क, स्मृतियों में अंकित, अमिट, 

फिर भी, तिथि जो श्राद की आई है l

शांत समुंद्र में ,यादों का ज्वार सा बन

डबडबाए नयनों से उमड़, बहती अश्रुधारा l

हाथों में तर्पन के अक्षत, तिल

अर्पण के बोलों को, रोकता रुंधा कंठ

पूजन, श्राद की औपचारिकता ll


श्राद पर मेरी कलम का ह्रदय से संगम यह रचना कर पाया

स्वरचित- दुर्गा प्रसाद माथुर

Sunday, August 15, 2021

स्वतंत्रता दिवस-1

 

 

जन जन में गुणगान,

मां भारती का ध्यान ।।

माटी जैसे चंदन महके,

नाम है हिन्दुस्तान ।।

जन जन में गुणगान,

मां भारती का ध्यान ।।

स्वतंत्र भावस्वतंत्र तंत्र,

स्वतंत्र बोली और परिधान ।।

धन्य हुआ मैं जन्म लेकर,

मेरा न्यारा हिन्दुस्तान ।।

बच्चा बच्चा सैनिक बन,

बढ़ाता तिरंगे की शान ।।

अश्रुपूरित नयनों में,

वीर शहीदों का बलिदान ।।

प्रेम भावना, अमन चैन,

करता सबका कल्याण ।।

देश प्रेम के जयकारे से,

गूंज उठा आसमान ।।

जन जन में गुणगान,

मां भारती का ध्यान ।।

स्वरचित - डी पी माथुर

स्वतंत्रता दिवस