तीन दिन गांव में
शहर की भीड़ से दूर,गावं में,
देश की संस्कृति को जाना!
दरकते, बिखरते रिश्तों से दूर,
आत्मीयता को, कुछ करीब से जाना!
लहलहाते खेतों से फैली हरियाली को,
फूलों की महक, चिड़ियों की चहक में देखा!
पुराने बरगद की छांव में,
भोले भाले, लोगों को सुस्ताते देखा!
सच इन तीन दिनों में,
प्रकृति की मदमस्त हवाओं को, संगीत बन गुनगुनाते देखा।।
स्वरचित- डी पी माथुर