क्या मैं लिखता हूँ ? शायद कोई है जो लिखवाता है !
कलम हाथ में लूं , तो भावों में चला आता है। !
जब भी महसूस करूं अकेला , पास खिंचा आता है ।
मन के भावों में गोता लगा , पंक्तियां बन उभर जाता है ।
क्या मैं लिखता हूँ ? शायद कोई है जो लिखवाता है !!
जब भी सोचता हूँ , झिलमिल चेहरा सा उभर आता है !
सच मे ना सही , पर प्रेरणा बन जाता है !
वो मुस्कराहट, अलहड़पन, भोलापन जो मन को भाता है ।
वो ही तो मेरे , मन में बस जाता है !!
माँ, बहन, प्यार, पुत्री ये ही तो नाम बताता है !
सही पहचान पाया हूँ , वो ही तो लिखवाता है।
मन में आकर मेरे , कलम की प्रेरणा बन जाता है !!
चाहता हूँ उतार दूँ कर्ज उसका, हटा दूँ आवरण और उड़़ जाँऊ !
स्वच्छ वातावरण में, जो उसने दिखलाया है !!
लेकिन क्या भूल पाता हूँ ?
जब भी होता हँू अकेला , जाने क्यूं वो चला आता है। !
और फिर से याद बन , कलम से उभर जाता है !
इसी याद में खोकर , ज्यादा लिखने की प्रेरणा पाता हूँ !
लिखते लिखते ही नई नई पंक्तिया बनाता हूँ
क्या मैं लिखता हूँ ? शायद कोई है जो लिखवाता है !!