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Monday, March 11, 2013

प्रेम एक रूप अनेक

किसी को पवित्र , निस्वार्थ व समर्पित भाव से चाहने का अहसास ही सच्चा प्रेम या प्यार है 


  प्रेम या प्यार रूपी व्यापक शब्द को चन्द पंक्तियों में समेटना बहुत मुश्किल है। फिर भी बात प्रारम्भ की है तो थोड़ी सी चर्चा कर ही लेते हैं। कुछ वर्षो पूर्व तक प्यार का इजहार करने वाला सर्टिफाइड दिन वेलेन्टाइन डे इतना लोकप्रीय नही था। प्यार की बातें करने का सीघा सा ताल्लुक बच्चों के बिगड़ने से होता था। दोस्तो में भी प्यार की बातें अपराध की तरह छिपकर की जाती थी। और गलती से ये चर्चा अपने से बड़ो के सामने कर दी तो वे मन ही मन हमारे बिगडने का सर्टिफिकेट देते हुए कोसने लगते और तुरन्त कन्नी काट कर बिना काम के वयस्त हो जाते थे, पता नही उन्हे ये बातें बुरी लगती थी या शायद अपने जख्म कूरेदे जाने का डर सताता था। उनकी बेरूखी भाँपकर हमें भी अनिच्छा से चुप होना पडता था। लेकिन आज सभी प्रेम का मतलब समझ कर अहसास के साथ साथ इजहार भी करते हैं।
            दरअसल बोलने में बडा सरल व साघारण लगने वाला शब्द प्रेम या प्यार व्यावहारिकता में उतना ही कठिन है, सरल तो मात्र इसका एक रूप आर्कषण होता है । आर्कषण के साथ मीरा जैसा समर्पण व माँ जैसी निश्छल भावनाएँ जोड़ देने पर निश्चित रूप से असाधारण और अटूट शक्तिशाली सच्चा प्यार बन जाता है । और इस सच्चे प्यार की शक्ति के दम पर बडे से बडे काम हो जाते हैं। तभी तो घृतराष्ट्र के पुत्र प्रेम और पाण्डवों के द्रोपती से अटूट प्यार के कारण महाभारत हो गई और रावण के सीता मोह ने रामायण को जन्म दे दिया । यह सब प्यार की असाधारण शक्ति के ही रूप हैं।
             यदि पुछा जायें कि प्रेम क्या है ? तो इसका उत्तर प्रत्येक प्राणी के लिये अलग अलग होगा। क्योंकि जीवन के अनुभव के साथ साथ हमें इसके अनेक रूप देखने को मिलते हैं। जैसे- आत्मिक ,मानसिक , शारीरिक ,आध्यात्मिक प्रेम ,प्रकृति प्रेम , भौतिक प्रेम , वात्सल्य , आकर्षण, निश्चल प्रेम, सामाजिक प्रेम,।
              चलिए कुछ चर्चा सामाजिक रिश्तो में सबसे ज्यादा दिखने वाले प्यार के रोचक रूपों की कर लेते है । “गिरगिटी प्यार” में प्यार करने वाला जब आपके सामने होगा तो ऐसे प्यार दिखायेगा कि आपसे दूर कर दिया तो उसका हार्ट फेल हो जायेगा, सब कुछ खत्म हो जायेगा और सामने से दूर होते ही प्यार का बुखार गिरगिट की तरह रंग बदल कर आपकी कमियां गिनाने में लग जाता है। इसी के “दिखावटी रूप” में कुछ सामाजिक रिश्तेदारों को आपके बढ़ते रूतबे या स्टेटस के कारण दिखावटी प्यार के लिए मजबुर होना पडता है । और किसी किसी पति पत्नि को तो मात्र समाज को दिखाने के लिये या आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा के लिये ही प्यार का झूठ़ा नाटक करना पड़ता है क्योकि मन में अलग होने के बाद समाज में इज्जत और निर्वहन का डर उन्हें ऐसा करने को मजबूर करता है। इसी प्रकार प्यार का “व्यापारिक रूप” भी आजकल ज्यादा दिखने लगा है, क्योंकि वस्तुओं की तरह प्यार मे भी सौदा होने लगा है इंसान सक्षम होते ही अपने प्रियतम के रूप में एक गुलाम खरीदना चाहता है ऐसा गुलाम प्रियतम जो केवल खरीदने वाले के इशारों पर नाचें, अपनी इच्छाओं को दबाकर रखें और दिखावटी समाज के सामने खरीददार को बेहद प्यार का ढोंग सही से करता रहे । गुलाम प्रियतम से आशाएँ पूर्ण होने तक प्यार भी बना रहता है  जैसे जैसे प्रतिफल का व्यापार घटता है ये प्यार भी टूटने लगता है और फिर या तो खत्म हो जाता है या गुलाम पक्ष अपनी भवनाओं पर काबू करने के लिये मजबूर होकर एक तरफा सच्चा प्यार करने लगता है। छोडिये ज्यादा पोल खोलना ठीक नहीँ क्योकि मुझे अच्छी तरह मालूम है कि आप इन सब जानकारियों में मेरे से सीनियर ही हैं ।
             रोचक रूपों के बाद हम वापस अपनी मुख्य बात पर आते है। संसार में प्रत्येक जीव-निर्जीव के जन्म की तरह ही प्यार का भी जन्म होता है। जी हाँें, जिस क्षण हमें किसी से जुड़ाव, लगाव या आकर्षण महसूस हो समझ लो प्यार का जन्म हो गया तभी तो जब हमारे घर में किसी बालक का जन्म होने वाला होता है तो उसके आने से पहले ही हमारे मन में उसके प्यार का अन्कुर फूट पड़ता हैं जबकि ना तो हमने उसे देखा होता है और ना ही हमें उसके स्वरूप का पता होता है।
             अतः हम कह सकते हैं कि किसी प्राणी का अन्य प्राणी या वस्तु के प्रति आकर्षित या सम्मोहित हो जाने का अनुभव ही प्यार या प्रेम है जिसे सकारात्मक सोच एवम् निश्चल और पवित्र भावना मात्र से ही अनुभव किया जा सकता है यदि एक वाक्य में कहना चाहें तो “ किसी को पवित्र , निस्वार्थ व समर्पित भाव से चाहने का अहसास ही सच्चा प्रेम या प्यार है ” । यही कारण है कि नारी को उसके निश्चल और असीम प्यार के कारण समाज में शक्ति का प्रतिक माना जाता है ।
             अब समस्या ये है कि जब बच्चों से बडो तक सभी को प्यार होता है तो फिर टकराव कहाँ से आ जाता है चूकिं प्यार का सीधा सम्बन्ध हमारी उम्र के साथ होता है। इसलिए उम्र के बढने के साथ साथ प्यार के प्रति धारणा भी बदलती रहती है। बचपन में जो भी हमें प्यार से कुछ देता या बोलता, हम उसी के प्यारे हो जाते थे । उम्र के बढने के साथ साथ हमारे प्यार का दायरा सिमटता गया , कुछ अपने हो गये कुछ पराये हो गये। कुछ और बड़े हुए तो प्यार का दायरा हमारी कामयाबी से जुड़ गया, कामयाबी मिलती गई तो सभी रिश्तेदारों के  प्यार का झूठ़ा दिखावा बढता गया, कामयाबी नही मिली तो वे पहचानने में भी दिक्कत महसूस करने लगते है । प्यार का ये उतार-चढ़ाव जीवन पर्यन्त चलता रहता है । कुछ आदर्श परिवारो को छोड कर बात करें तो अघिकांश में आप अपने परलोक गमन से पहले उन्हें कुछ आर्थिक लाभ दे गये तो अखबार के दिखावटी विज्ञापन से प्यार चलता रहेगा अन्यथा आप जानते ही हैं।
              यह सही है कि प्यार का सुख भोगने की लकीर भी हर किसी के हाथ में नही होती है कहने को तो एक सच्चा प्रेमी प्यार में सारे जहाँ को भूल जाता है । लेकिन यदि  साधारण बात करें तो किसी से भी सच्चा प्रेम तब ही सम्भंव है जब हम किसी की गल्तियों को माफ करना सीखें और उसके अवगुणों को भूलने की आदत बनायें । और यह सब तब तक नही हो सकता जब तक हम अपने अहम् को ना छोड दें । क्योंकि अहमं प्यार की उम्र कम कर देता है या एक तरफा कर देता है। इसमे एक बात और महत्वपूर्ण है जब किसी का अपने घरवालों के साथ व्यवहार सही नही है तो वह कभी भी सच्चा प्रेमी नही हो सकता बस वो दिखावा करके अपने आप को छलता रहेगा।
             अन्त में कहना चाहूँगा कि हमें केवल ईश्वर या माँ-बाप से प्यार में सौ प्रतिशत रिटर्न { प्रतिभूति} मिल सकता है क्योंकि हम भी वहाँ सम्पूर्ण समर्पित होते है इनसे रिटर्न के रूप में हमें प्यार की शक्ति मिलती है । इसी प्रकार हम प्यार की व्यापकता को अपने हद्वय में स्थायी रूप से बिना प्रतिभूति की आशा के बैठाकर और सम्पूर्ण सर्मपण देकर अपने जीवन साथी से भी प्यार की शक्ति का रिटर्न हासिल कर सकते हैं ।